लेखनी प्रतियोगिता -26-Mar-2022 शहीद की विधवा
मै शहीद की विधवा कहलाती हूँ।
पूरे परिवार का बोझ उठाती हूँ।।
वह शहीद होकर अमर होगयेहै।
मुझे तिल तिल मरने छोड़ गये है।।
रंग छिन गये सारे मेरे जीवन के।
रंग बिरंगे बस्त्र छिन गये तन के।।
मेहदी भी अब छिन गयी इन हाथौ की।
महावर छूटा पावौ का चूडी़ टूटी हाथौ की।।
मै विधवा होकर भी सब सह जाती हूँ।
विधवा होने के सभी दर्द सह जाती हूँ।।
इससे अच्छा मुझे अपने पास बुलवालो।
मेरी भी एक टिकट जल्दी करवालो।।
अब मै विधवा हौने का कितना दर्द सहूँगी।
अब मै कब तक विधवा का दर्द सहूँगी।।
Shrishti pandey
28-Mar-2022 07:48 AM
Very nice
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Naresh Sharma "Pachauri"
28-Mar-2022 02:13 PM
धन्यवादजी
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Punam verma
27-Mar-2022 09:19 AM
Very nice
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Naresh Sharma "Pachauri"
28-Mar-2022 02:13 PM
धन्यवादजी
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Marium
27-Mar-2022 12:33 AM
Nice
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Naresh Sharma "Pachauri"
28-Mar-2022 02:13 PM
धन्यवादजी
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